क्या सिखाता है विजयदशमी का त्योहार?

राजेश सक्सेना


मध्य केसरी डेस्क। हर्ष उल्लास और विजय का पर्व विजय दशमी, असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है। हर वर्ष विजय दशमी का पर्व पूरे देश में उत्साह उमंग के साथ सभी मनाते हैं। एक बार फिर हम इस पर्व को मना रहे हैं। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था और मां दुर्गा ने नौ रात्री व दस दिन के युद्ध के उपरांत महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रुप में मनाया जाता है और दशमी को विजय दशमी के रुप में जाना जाता है।

चातुर्मास बीतने के पश्चात धरती अपने अवसाद क्षेत्र से बाहर निकलती है तो कार्तिक मास का धवल चंद्रमा, धरती के स्वागत के लिए अपनी चांदनी के साथ खड़ा होता है। इसी के साथ प्रारंभ होती है नवरात्री। नौ दिनों तक मातारानी के नौ रुपों की पूजा अर्चना के साथ अपने-अपने तरीके से व्रत व उपवास पौराणिक वर्णन में इसे अहोरात्र माना गया है, जो कालांतर में नवरात्री के रुप में प्रचलित हुआ। यह प्रकृति के साथ मनुष्य के सायुज्य की घटना थी, क्योंकि यहां से रात्रिचर्या की सजगता प्रारंभ होती है।

9 दिनों तक अपने अपने हिसाब से,अपनी शक्ति और सामर्थ्य से लोग उपवास रखते हैं। उपवास लोगों को इन दिनों में ईश्वर के, मां दुर्गा के, देवी देवताओं के और करीब और सन्निकट लाता है। इन नौ दिनों में लोगों में शक्ति का, उर्जा का संचार होने के साथ ही जीवन में एक सकारात्मकता या पोजीटिविटी पैदा करता है। सूत्रस्थान में चरक कहते है। गुणों के समीप बैठें दुर्गणों से दूर हो जाइए यही उपवास है। शरीर को सुखाना उपवास नहीं।

पूरा विश्व आज कोरोना की जद में है इसी के चलते विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसी गाइडलाइन का पालन किया और इसे करने की सलाह दी। कोरोना के समय लगातार इम्युनिटी बढाने की बात हो रही है इसमें भी हमारी दिनचर्या को ठीक रखने की बात हो रही है। समय पर और ऋतु के अनुसार भोजन की बात हो रही है। महामारी पर नियंत्रण रखने के लिए नवरात्रि और विजय दशमी से सीख लेना जरुरी है। इन दोनों से हमें नियंत्रण और नियंत्रित होने की सीख मिलती है। जिसको लेकर कोरोना काल में लगातार बात हुई है।

गीता में कृष्ण कहते हैं या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी- हे अर्जुन जो सामान्य जनों के लिए रात है वह योगियों के लिए दिन है और इसी के साथ रात्री के संयम की शुरुआत होती है। वाग्भट ने तीन तरह की चर्या को अपने जीवन में उतारने की बात कही है। दिनचर्या, रात्रिचर्या और ऋतुचर्या। इन पर यदि नियंत्रण हो जाये तो हर व्यक्ति के लिए हर दिन विजय दशमी होगी, सजगता होगी, प्रसन्नता होगी।

ये पर्व हमें बताता है, हमें सिखाता है कि समर्पण से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। श्रीराम ने रावण का वध करने के पूर्व जगत जननी की आराधना की और उनसे विजय का आशीर्वाद मांगा। इस पर जगत जननी प्रसन्न हुई और विजय ने श्रीराम के चरण चूमे। महिषासुरमर्दिनी स्वयं शक्ति का अवतार थीं, इसलिए शक्ति के नियंत्रण के लिए शिव को प्रकट और समर्पित होना पड़ा। भगवान शिव का समर्पण हमें यह सीख देता है कि बडी से बडी विपत्ति में भी धेर्य नहीं खोना चाहिए। जिस चीज को कैसे भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है वह समर्पण भाव से मिल जाती है।

हम इस पर्व से इस दिन से तमाम सीख ले सकते हैं। क्योंकि विजय दशमी का ये पर्व है ही ऐसा, जो हम सभी के जीवन का रास्ता या कहें सही रास्ता जीवन जीने की कला, जीवन में सफल होने की कला या जीवन में सफलता के मंत्र इस विजय दशमी में है। ये सिर्फ हर साल आने वाला एक त्यौहार नहीं बल्कि इंद्रियों पर नियंत्रण का एक पर्व है।