अभिनव शुक्ला
गुलाबो सिताबो
निर्देशक:- शूजित सरकार
सितारे:- आयुष्मान खुराना, अमिताभ बच्चन, विजय राज़, बृजेंद्र काला और सृष्टि श्रीवास्तव
शूजित सरकार के द्वारा निर्देशित गुलाबो सिताबो की कहानी लखनऊ की एक हवेली के इर्द गिर्द घूमती है। कहानी की शुरुआत हवेली की मालकिन के पति मिर्ज़ा(अमिताभ बच्चन) और हवेली के पुश्तैनी किरायेदार बांके की नोंक झोंक से होती है। बांके रह तो रहे हैं आज के समय में लेकिन किराया अपने बाबा के समय का ही दे रहे हैं। बांके जहाँ अपने सर पर बहनों की शादी का भार बांधे बैठा है वहीँ मिर्ज़ा हवेली के लिए अपने लालच को उल्फ़त का नाम दिए हुए है।बांके और मिर्ज़ा की इसी नोंक झोंक के सहारे ही आगे बढ़ती है फिल्म की कहानी, बृजेंद्र काला और विजय राज़ जैसे किरदारों ने फिल्म को और रोचक बनाया है। फिल्म में गुड्डो बनी सृष्टि श्रीवास्तव ने भी बेहतरीन डेब्यू(debut) किया है फ़िल्मी पर्दे पर और वो भी ऐसे मंझे हुए कलाकारों के साथ, लेकिन इसका असर उनकी एक्टिंग पर नहीं पड़ा उन्होंने बेहतरीन तरह से अपना काम किया है। कहानी कहीं कहीं पर ज़्यादा खिंचती हुई ज़रूर लगती है वजह है उसका स्क्रीनप्ले(screen play) और अगर उसे छोड़ दें तो यह एक बेहतरीन फिल्म है, सभी किरदारों ने बहुत ही बारीक़ी से लखनवी एक्सेंट पकड़ा है और बखूबी पर्दे पर दिखाया भी है।
फ़िल्म के डायलॉग्स(dialogues) बहुत ही अच्छी तरह से लिखे गए हैं और लखनवी अंदाज़ को ध्यान में रखकर लिखे गए हैं। कुछ डायलॉग्स जैसे किसी के कमरे में जाने से पहले बोलना कि हम आ रहे हैं ये लखनवी तहज़ीब को दर्शाता है। आयुष्मान खुर्राना का एक डायलाग(dialogue) जो वो अपनी बहनों से कहता है कि ये तुम लोग एक-एक साल में चार-चार साल कैसे बड़ी हो रही हो, यह मध्यमवर्ग की चिंता को दर्शाता है जो उसके दिमाग में लड़की के पैदा होते ही शुरू हो जाती है, उसके ब्याह की। अगर एक लाइन में कहें तो बंदर बाँट की कहानी है गुलाबो-सिताबो।
फ़िल्म का डायरेक्शन और किरदारों की एक्टिंग(acting) उसकी जान है, स्क्रीनप्ले(screenplay) थोड़ा कमज़ोर है, म्यूजिक औसत दर्जे का है कुछ ज्यादा ख़ास नहीं है जिसे आप अपनी प्लेलिस्ट(playlist) में जगह देना चाहें।
Imdb:- 7.0
मेरी रेटिंग:-2.5